माता तारा हिंदू धर्म में आदिशक्ति के दस महाविद्याओं में से एक देवी हैं। उन्हें महाकाली के एक रूप के रूप में पूजा जाता है। माता तारा को अक्सर अपनी कृपा और भक्तों की रक्षा के लिए जाना जाता है। उनकी पूजा मुख्य रूप से तांत्रिक विधियों से की जाती है और उन्हें संकटों से मुक्ति दिलाने वाली देवी माना जाता है। उनका स्वरूप नीला है, और वह अपने हाथों में खड्ग, खप्पर, और कमल धारण करती हैं। तारा देवी का मुख्य मंदिर पश्चिम बंगाल के तारापीठ में स्थित है, जो उनकी उपासना का प्रमुख केंद्र है। मां तारा के तीन प्रमुख रूपों का वर्णन तांत्रिक ग्रंथों और पुराणों में किया गया है। ये तीन रूप हैं:
एकजटा तारा : यह तारा देवी का सौम्य और शांत रूप है। इस रूप में मां तारा अपनी कृपा और शांति से भक्तों का कल्याण करती हैं। एकजटा तारा को ज्ञान, विद्या और आध्यात्मिक उन्नति की देवी के रूप में पूजा जाता है।
उग्रतारा : यह तारा देवी का उग्र और भयंकर रूप है। इस रूप में मां तारा अपने भक्तों की रक्षा करने के लिए हर प्रकार की बाधाओं और संकटों का नाश करती हैं। उग्रतारा को संकटमोचक और भक्तों को कठिनाइयों से उबारने वाली देवी माना जाता है।
नील सरस्वती : यह मां तारा का एक रूप है जिसमें वे ज्ञान, विद्या, और कला की देवी के रूप में पूजी जाती हैं। नील सरस्वती का स्वरूप नीले रंग का होता है, और उन्हें विद्या की देवी सरस्वती के तांत्रिक रूप में देखा जाता है। वे विशेष रूप से तांत्रिक साधना के लिए महत्वपूर्ण मानी जाती हैं और साधकों को उच्च ज्ञान और सिद्धियों की प्राप्ति में सहायता करती हैं।
माँ तारा का अवतार
एक प्रमुख कथा के अनुसार, जब समुद्र मंथन के समय हलाहल (विष) निकला और तीनों लोकों को जलाने लगा, तब भगवान शिव ने उस विष को पी लिया। विष के प्रभाव से शिवजी का कंठ नीला हो गया, और वे अत्यधिक कष्ट में आ गए। इस स्थिति में देवी पार्वती ने मां तारा का रूप धारण किया और उन्हें अपनी गोद में लेकर उनके कष्ट को दूर किया। इस प्रकार, वे संकटमोचक और जीवनदायिनी के रूप में जानी गईं।
अन्य कथा के अनुसार, जब रक्तबीज नामक असुर का आतंक बढ़ गया, तब सभी देवताओं ने देवी तारा का आह्वान किया। रक्तबीज की विशेषता यह थी कि उसकी रक्त की प्रत्येक बूंद से नया रक्तबीज पैदा हो जाता था। मां तारा ने अपने उग्र रूप में रक्तबीज का वध किया और उसकी रक्त की बूंदों को अपने मुख में समेटकर उसे पूर्ण रूप से समाप्त किया। इस रूप में मां तारा को उग्रतारा भी कहा जाता है।
एक अन्य कथा में, जब असुरों ने वेदों को चुरा लिया, तब मां तारा ने अवतार लेकर वेदों का उद्धार किया और उन्हें वापस स्थापित किया। इस कारण वे विद्या और ज्ञान की देवी के रूप में भी पूजी जाती हैं।
माँ तारा पूजा का महत्व
मां तारा की पूजा का महत्व अत्यधिक है, क्योंकि यह भक्तों को जीवन के संकटों से मुक्ति प्रदान करती है और उन्हें मानसिक, आध्यात्मिक, और भौतिक लाभ देती है। मां तारा को संकटमोचक, ज्ञान की देवी, और समृद्धि की संप्रदाता के रूप में पूजा जाता है। उनकी उपासना से विद्या, बुद्धि, और स्वास्थ्य में वृद्धि होती है, साथ ही धन और समृद्धि में भी वृद्धि होती है। यह पूजा आत्मिक उन्नति और शांति प्राप्त करने के लिए भी महत्वपूर्ण मानी जाती है।
5100 मंत्र जाप
माँ तारा के मंत्र जाप से भक्तों के जीवन में आने वाली समस्याओं का नाश होता है। माँ तारा का मंत्र जाप करने से मन शांत होता है, आत्मविश्वास बढ़ता है। जातक की आंतरिक चेतना जागृत होती है और जीवन में स्थिरता आती है।
₹ 3,151/-
(1 आचार्य और 1 पंडित सहित 2 दिवसीय अनुष्ठान)
11000 मंत्र जाप
माँ तारा के मंत्र जाप से भक्तों के जीवन में आने वाली समस्याओं का नाश होता है। माँ तारा का मंत्र जाप करने से मन शांत होता है, आत्मविश्वास बढ़ता है। जातक की आंतरिक चेतना जागृत होती है और जीवन में स्थिरता आती है।
₹ 7,151/-
(1 आचार्य और 2 पंडित सहित 3 दिवसीय अनुष्ठान)
21000 मंत्र जाप
माँ तारा के मंत्र जाप से भक्तों के जीवन में आने वाली समस्याओं का नाश होता है। माँ तारा का मंत्र जाप करने से मन शांत होता है, आत्मविश्वास बढ़ता है। जातक की आंतरिक चेतना जागृत होती है और जीवन में स्थिरता आती है।
₹ 15,051/-
(2 आचार्य और 2 पंडित सहित 4 दिवसीय अनुष्ठान)
51000 मंत्र जाप
माँ तारा के मंत्र जाप से भक्तों के जीवन में आने वाली समस्याओं का नाश होता है। माँ तारा का मंत्र जाप करने से मन शांत होता है, आत्मविश्वास बढ़ता है। जातक की आंतरिक चेतना जागृत होती है और जीवन में स्थिरता आती है।
₹ 35,151/-
(3 आचार्य और 4 पंडित सहित 7 दिवसीय अनुष्ठान)